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यह रात कटे अब कटे नही !

यह रात कटे अब कटे नही !

Written by Keshav Jha


About: This is my one of the best poem which I written on ramayana fight.

Video available at https://youtu.be/1HMPoT9R5Xo


यह रात कटे अब कटे नही ,

आभा प्रलय की हटे नही ,

यह रात कटे अब कटे नही ।।


कुम्भकरण मेघनाद समर्पण ,

युद्ध मे किया था प्राण जब अर्पण ,

कटा सिर मेघनाद का जब था ,

हृदय में मेरे तब आग लपटा था ,

अंतिम रात यह युद्ध से पहले ,

कर लूं मन को क्रुद्ध मैं पहले ,

विपदा संग्राम की छटे नही ,

यह रात कटे अब कटे नही ।।


कल जाने संग्राम में क्या होगा ?

युद्ध निरंतर या विराम होगा ,

यह कैसी उलझन है मन मे ,

दो सन्यासी दंडक वन के ,

लंका में चहुँओर त्राहिमाम है ,

सैनिकों को भी तनिक न आराम है ,

चिंता समर की घटे नही ,

यह रात कटे अब कटे नही ।।


त्रिभुवन विजेता असहाय खड़ा है ,

हाय ! क्या करे ? समस्या बड़ा है ,

सोच बुद्धि मलिन पड़ी है ,

लंका वीर विहीन खड़ी है ,

एकल दशानन क्या - क्या करे ?

कैसे अपने झोली में जीत भरे ,

प्रातः भोर का पौ क्यों फ़टे नही ?

यह रात कटे अब कटे नही


धीर नायक गंभीर हुए है ,

रजनी से अब अधीर हुए है ,

मनुष्यता का कर्ज चुकाते ,

कुश की सेज भू पर बिछाते ,

फन शेषनाग का छत्र नही ,

चरणों पर श्री की नेत्र नही ,

लंकापति राम नाम रटे नही ,

यह रात कटे अब कटे नही ।।


सिया वियोग अब सहा नही जाता ,

बात हिय की लखन से कहा नही जाता ,

भरत रिपु बाट जोह रहे होंगे ,

प्रजा समेत सब रो रहे होंगे ,

कल अंतिम रण का बिगुल बजेगा ,

गदा बाण और त्रिशूल सजेगा ,

अधीर समक्ष धैर्य डटे नही यह रात कटे अब कटे नही ,


अनुज को जब बाण लगा था ,

तब जननी का वचन ठगा था ,

माना धर्म हमारे पक्ष में ,

किन्तु बलि दशानन विपक्ष में ,

विभावरी की कठिन परीक्षा ,

अभी तो होगी धैर्य की समीक्षा ,

विरक्त गर्त क्यों पटे नही ,

यह रात कटे क्यों कटे नही ।।


सच है समर पुरुषों को शोभे ,

परिणाम इसका पर स्त्रियाँ भोगे ,

मांग की सिंदूर रेखा कल किसी की सिमटेगी ,

सीता भरेगी सिसकियाँ या मंदोदरी कल सिसकेगी ?

पाप पुण्य का खेल है सारा ,

पाप से पूण्य क्या कभी हारा !!

मंदोदरी की चिंता घटे नही ,

यह रात कटे अब कटे नही ।।


पुत्र अनुज सब हुए बलिदानी ,

लंकाधिपति स्वयं इतने ज्ञानी ,

क्यों सीता का हरण किया था ?

राम ने जब सिया वरण किया था ,

कैसे स्वामी विजय की प्रार्थना करूँ ,

कैसे पुण्य छोड़ पाप की गठरी धरूँ ,

सुलोचना की छवि आंखों से हटे नही ,

यह रात कटे अब कटे नही ।।


भूमिजा मन ही मन विचारी ,

नारी जीवन सदा से भारी ,

धर्म संकट में उस क्षण मैं थी ,

लखन का कहा कि ऋषि सेवा ? इस भ्रम में थी ,

जानकी रघुवर के दर्शन को तरसे ,

दृग से उसके टसुआ बरसे ,

मैथिली का दुख किसी से बंटे नही ,

यह रात कटे अब कटे नही ।।



हे नाथ ! रघुविर कब आओगे ?

बिरह की ज्वाला कब बुझाओगे ,

रावण तो कुकर्मी है , इतना बड़ा अधर्मी है ,

यह निशा अत्यंत ही निर्दयी ,

बिताए बीते न अति निर्भयी ,

अब और संताप मुझसे सटे नही ,

यह रात कटे अब कटे नही ।।


कल भूल का मेरे परिणाम है ,

अंतिम समर का मान है ,

वह रावण छल में प्रवीण है ,

रथ उसका अत्यंत ही नवीन है ,

मेरे प्रभु भू से लड़ेंगे कैसे ?

लंकापति का प्राण हरेंगे कैसे ?

लक्ष्मण की व्यथा घटे नही ,

यह रात कटे अब कटे नही ।।


वीर बजरंगी घुमत फिरत है ,

राम भाव का नाम सुमिरत है ,

कल संग्राम चरम पे होगा ,

न्याय अब करम पे होगा ,

रावण की सेना बधिरों की है ,

राम नाम अधरों पर है ,

हनुमंत स्वामिभक्ति से हटे नही ,

यह रात कटे अब कटे नही ।।

आभा प्रलय की हटे नही ,

यह रात कटे अब कटे नही ।।


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