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हे वीर तुम बढ़े चलो By हर्ष 'देव


"हे वीर तुम बढ़े चलो"


हे वीर तुम बढ़े चलो संगठन गढ़े चलो।

देश की सुरक्षा हेतु प्राण अर्पित करें चलो।।


जो चिंगारी व्याप्त है युवाओं के रक्त में,

उस अग्नि को हवा तुम दिए चलो।


खोए नहीं शेषव किसी का रोए नहीं माता कोई,

ये  दृढ़ संकल्प मन में लिए चलो।


जब निगाह डालें भेड़िए मेरे देश पर,

उन कायरों के  रक्त को पिए चलो।


विचार जिसके देश को भलाई दे सकते नहीं,

उन विचार मंथनों का खंडन तुम किए चलो।


अंतस में जो सोया हुआ है राम किसी कोने में,

उस राम के आदर्श को तुम लिए चलो।


नारी तो मूरत है सौम्यता की ममता की,

लेकिन युद्ध में रणचंडी भी बने चलो।


दीप जो जलाया था बलिदानों ने रक्त से,

उस ज्ञानदीप को उद्भासित सदा किए चलो।


जीते जी मुर्दा है वह जो देश के लिए जिए नहीं,

'देव' ऐसे मुर्दे में प्राण तुम भरे चलो।।


     —हर्ष 'देव'

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