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कौख का कर्ज़ by Shivani

Written by : Shivani, B.Sc(H) Nursing student, Delhi

जिसने तुमहे नौ महीने अपनी कौख मे रखा

क्या तुम उसका शुक्र्या अदा कर पाओगे?

क्या तुम उस कौख का कर्ज चूका पाओगे?


तुमको जन्म वो देती है

इस दुनिया में लाती है

ना जाने कितने दुख वो सह कर

तुमको सुख वो दे पाती है

अपना पूरा जीवन वो त्याग कर

एक नीर्जीव को जन्म वो देती है


क्या तुम भी अपना पूरा जीवन उस पर समर्पित कर पाओगे?

हे मानव ! क्या तुम उस माँ की कौख का कर्ज चुका पाओगे?


अनपड़ हो कर तुमको पठा़ती है

खुद भूखी रह कर तुमहे खिलाती है

पूरी दुनिया से छूपा कर

अपनी आँचल में दूध वो पिलाती है

हे नर ! क्या तुम उसके दुध का रीर्ण चूका पाओगे?

क्या तुम उस कौख का कर्ज़ उतार पाओगे?


माँ का दूलार , माँ का प्यार

सिर्फ तुम पर ही वो चाहे अपना पूरा जग्त लुटार

क्या तुम भी उस पर उतना ही प्यार लुटा पाओगे?

ऐ मनुष्य! क्या तुम उस कौख का कर्ज़ उतार पाओगे?


दुनिया से लड़ कर तुमहे बचाती

लोरी गां कर तुमहे सुलाती

बीमार होने पर परेशान हो जाती

ईश्वर से बस तुमहारी सलामती ही माँगती

क्या तुम उस जननी को पूज पाओगे?

हे मानव! क्या तुम उस कौख का कर्ज़ उतार पाओगे??

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